अपनी मोहक मुस्कान के जरिए लाखों दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली माधुरी दीक्षित यशराज फिल्म्स की ‘आजा नच ले’ के जरिए वापसी कर रही है। 30 नवम्बर को यह फिल्म प्रदर्शित होने जा रही है। माधुरी के प्रशंसक इस फिल्म का बेताबी के साथ इंतजार कर रहे हैं। माधुरी के मुताबिक उनकी वापसी के लिए इससे बेहतर फिल्म और कोई नहीं हो सकती थी। अब फैसला दर्शकों के हाथों में हैं। पेश है माधुरी से बातचीत...
क्या आपके लिए वापसी का निर्णय करना कठिन था?
हाँ। लंबे समय बाद वापसी करना आसान नहीं है क्योंकि आपको श्रेष्ठ काम करना होता है। आपके हर कदम पर निगाह रखी जाती है। सभी को उत्सुकता रहती है कि आप कौन सी फिल्म कर रहे हैं, क्या भूमिका निभा रहे हैं? लोगों की बहुत ज्यादा अपेक्षाएँ रहती हैं और इसका सारा दबाव आप पर होता है। क्या मैं सही कर रही हूँ? क्या मेरा काम पसंद किया जाएगा? जैसे प्रश्न भी दिमाग में उठते हैं। मेरे दो बच्चे हैं और उनकी जिम्मेदारी भी मुझ पर है। मैं सोचती थी कि क्या वे मुंबई से तालमेल बिठा सकेंगे क्योंकि वे कभी भी इतने लंबे समय तक मुंबई में नहीं रहे। इसलिए मैं थोड़ी चिंतित भी थी। लेकिन उन्होंने शूटिंग का भरपूर मजा लिया। मेरा बड़ा बेटा तो अब हिंदी बोलने भी लगा है और हिंदी गाने भी गाने लगा है।
आपको यह फिल्म कैसे मिली?
फिल्मफेअर अवॉर्ड में परफॉर्म करने के बाद यशजी ने मुझसे पूछा था कि क्या मैं फिल्मों में फिर से काम करूँगी। हमारी सिर्फ बातचीत हुई थी। मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। बाद में आदित्य चोपड़ा ने मुझसे बात की और फिल्म का विषय बताया। यशजी के साथ मैं ‘दिल तो पागल है’ जैसी फिल्म कर चुकी हूँ। वे बेहद सुव्यवस्थित तरीके से काम करते हैं और जो कहते हैं वे पूरा करते हैं। मैं उनकी बेहद इज्जत करती हूँ।
‘आजा नच ले’ की कहानी में आपको ऐसा क्या नजर आया कि आपने हाँ कहा?
पश्चिमी संस्कृति हमारे देश में पैर पसार रही है, इस वजह से हमारी संस्कृति को खतरा पैदा हो गया है। हमारी कलाएँ लुप्त हो रही हैं। थिएटर भी उनमें से एक है। यह फिल्म हमें हमारी जड़ों, मूल्यों और संस्कृति की तरफ वापस ले जाती है। इसकी कहानी आज के दौर से मेल खाती है। यह एक ‘फील गुड मूवी’ है।
आपके किरदार के बारे में बताइए।
मैं इसमें दीया नामक चरित्र निभा रही हूँ, जो बेहद मजबूत इरादों और स्वतंत्र विचारधारा वाली महिला है। वह प्यार में पड़कर अपना गाँव छोड़ न्यूयार्क चली जाती है। शादी के बाद उसे अहसास होता है कि उसने गलत आदमी से प्यार किया है। वह अपने गाँव वापस आती है। गाँव वाले उससे नाराज हैं। साथ ही जो चीज उसके दिल के करीब है उसे भी वह बचाना चाहती है। दीया उन लोगों में से नहीं है जो समस्याओं से घिरने के कारण बैठकर रोने लगते हैं। वह समस्या से निपटने में विश्वास करती है। वह बहुत आशावादी है और हमेशा आगे की सोचती है। उसका अच्छाई पर विश्वास है और वह मानती है कि हर आदमी के भीतर अच्छाई मौजूद है।
वर्षों बाद जब आपने पहले दिन शूटिंग की, तो कैसा लगा?
शानदार। पहले दो घंटे मैं जरूर थोड़ी आशंकित थी कि मैं कुछ भूल तो नहीं गई, लेकिन दो घंटे बाद मैं यह बात भूल चुकी थी कि मैं छ: वर्ष बाद शूटिंग कर रही हूँ।
क्या फिल्म इंडस्ट्री में आपको कोई बदलाव महसूस हुआ?
मुझे कई बदलाव देखने को मिलें। अब विभिन्न विषयों पर फिल्में बनाई जा रही हैं। सारा काम सुव्यवस्थित तरीके से होने लगा है। पटकथा पहले ही दे दी जाती है। मुझे याद है कि पहले जब मैं शूटिंग पर जाती थी तो कई बार मुझे पता ही नहीं होता था कि मुझे क्या करना है। सेट पर ही संवाद लिखे जाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होता। इससे कलाकारों को बहुत मदद मिलती है। वे तैयारी के साथ आते हैं और इससे उनके काम में और निखार आता है। अब सिंक साउंड में शूटिंग की जाती है, जिससे डबिंग का झंझट खत्म हो गया है। आजकल ‘भेजा फ्राय’ और ‘खोसला का घोंसला’ जैसी फिल्में भी सफल होती हैं। यह भारतीय सिनेमा के लिए बहुत उम्दा बदलाव है।
निर्देशक अनिल मेहता के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मैं सोचती थी कि मुझसे ज्यादा धैर्यवान व्यक्ति इस दुनिया में दूसरा नहीं होगा, लेकिन अनिल से मिलने के बाद लगा कि ऐसा दूसरा व्यक्ति भी है। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अनिल अपना आपा नहीं खोते। एक निर्देशक के रूप में वे जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए। वे सुझावों का हमेशा स्वागत करते हैं और अपने कलाकारों को अपने हिसाब से अभिनय करने की भी छूट देते हैं।
‘आजा नच ले’ के बाद क्या आप और फिल्म करेंगी?
इस समय मैंने इस बारे में कुछ भी नहीं सोचा है।
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